वडोदरा का यह लक्ष्मी विलास पैलेस लंदन के बकिंघम पैलेस से भी चार गुना बड़ा है
लक्ष्मी विलास पैलेस को अगर वडोदरा की पहचान कहा जाए तो गलत नहीं होगा। सूर्यास्त की सुनहरी रोशनी में डूबा यह भव्य महल अपने राजसी वैभव की पहचान को बरकरार रखते हुए मन में उभरता है। इस भव्य महल का निर्माण 1890 में महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ ने करवाया था। इस महल के डिजाइन को बनाने की जिम्मेदारी अंग्रेजी वास्तुकार चार्ल्स मंट को दी गई थी। लक्ष्मी विलास पैलेस इंडो-सरसेनिक रिवाइवल आर्किटेक्चर में बनी एक संरचना है, जिसकी गिनती दुनिया के आलीशान महलों में होती है।
इस विशाल महल की नींव 1880 में रखी गई थी और इसका निर्माण कार्य 1890 में पूरा हुआ था। इस महल की संरचना में राजस्थानी, इस्लामी और विक्टोरियन वास्तुकला का एक अनूठा समामेलन देखने को मिलता है। इसलिए बाहर से इस महल के गुम्बदों में कहीं न कहीं एक मंदिर, एक मस्जिद और एक गुरुद्वारे के गुम्बद दिखाई देते हैं। वहीं पास में चर्च की फ़िरोज़ा संरचना भी दिखाई देती है।
दरअसल, गायकवाड़ वंश मूल रूप से मराठा है, इसलिए उनके द्वारा बनाए गए भवनों में मराठी वास्तुकला जैसे तोरण, झरोखा, जाली आदि के नमूने देखने को मिलते हैं। महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ III गायकवाड़ राजवंश के एक बहुत ही राजसी राजा थे, उनके शासनकाल के दौरान बड़ौदा की रियासत का कायाकल्प किया गया था। महल अपने आप में गायकवाड़ वंश की बहुमूल्य वस्तुओं का संग्रहालय है। यहां एक दरबार हॉल है, जिसमें राजा रवि वर्मा द्वारा बनाई गई अमूल्य पेंटिंग हैं।
इन चित्रों को बनाने के लिए राजा रवि वर्मा ने पूरे देश की यात्रा की थी। लक्ष्मी विलास पैलेस में तस्वीरें क्लिक करना मना है। यह एक निजी महल है, जिसे देखने के लिए 150 रुपये खर्च करने पड़ते हैं। 700 एकड़ में फैला यह महल बकिंघम पैलेस से चार गुना बड़ा है। और सभी आधुनिक सुविधाओं से लैस है। यह भारत में अब तक बना सबसे बड़ा महल है, जिसके अंदर मोती बाग पैलेस, मकरपुरा पैलेस, प्रताप विलास पैलेस और महाराजा फतेह सिंह संग्रहालय जैसी कई अन्य इमारतें हैं।