माता वैष्णो देवी की यह मान्यता यह है कि जम्मू कश्मीर राज्य के कटरा शहर मे त्रिकुट पर्वत पर विराजमान देवी वैष्णव देवी सबकी मनोकामना पूरी करती है। वैष्णो देवी की गुफा में प्राकृतिक रूप से तीन पिण्डी बनी हुई है। यह पिण्डी देवी सरस्वती, लक्ष्मी और काली की हैं। भक्तों को इन्हीं तीन पिण्डियों के दर्शन होते हैं। मान्यता है की माता के दरबार मे जो भी व्यक्ति सच्चे दिल से जाता है। वह कभी खाली हाथ नहीं लौटता। कहा जाता है की जिस किसी भी व्यक्ति को माता का बुलावा आता है। वह किसी ना किसी बहाने से माता के दरबार पहुंच ही जाता है।
मंदिर की कथा
ऐसा कहा जाता है कि वैष्णों देवी मंदिर का निर्माण लगभग 700 साल पहले एक भगत ब्राह्मण श्रीधर द्वारा कराया गया था। वह बहुत ज्यादा गरीब थे, उनके मन में मां वैष्णों देवी के लिए बहुत ज्यादा भक्ति थी। ऐसा कहा जाता है कि उन्हें एक दिन मां सपने में दिखी और कहां कि वो उनके लिए एक भंडारा कराए। मां वैष्णो देवी को समर्पित भंडारे के लिए एक शुभ दिन तय किया गया और श्रीधर ने आसपास के सभी गांव वालो को प्रसाद ग्रहण करने का न्योता भी दे दिया। मां वैष्णों देवी के इस भंडारे के लिए कुछ लोगों ने उनकी मदद की लेकिन वो मदद उस भंडारे के लिए काफी नहीं थी। जैसे-जैसे भंडारे का का दिन नजदीक आता जा रहा था ब्राह्मण की परेशानी बढ़ती जा रही थी। वह बस यही सोच रहे थे कि इतने कम सामग्री के साथ भंडारा कैसे हो पाएगा। भंडारे से एक दिन पहले ब्राह्मण एक पल के लिए भी नहीं सो पा रहे थे यह सोचकर की वह मेहमानों के खाने का इंतजाम कैसे करेगा। वह सुबह तक पेरशानी से घिरे हुए थे और ऐसे में उन्हें बस देवी मां के किसी चमत्कार की उम्मीद थी।
ब्राह्मण अपनी कुटिया के बाहर पूजा के लिए बैठ गए और दोपहर तक भंडारे के लिए मेहमान आना शुरू हो गए। सभी लोग ब्राह्मण की छोटी सी कुटिया में आसानी से बैठ गए और इसके बाद भी कुटिया में जगह बची हुए थी।
श्रीधर ने अपनी आंखें खोली और सोचा की इन सभी को भोजन कैसे कराएंगे, तब उसने एक छोटी लड़की को झोपडी से बाहर आते हुए देखा जिसका नाम वैष्णवी था। वह भगवान की कृपा से आई थी, वह सभी को स्वादिष्ट भोजन परोस रही थी, भंडारा बहुत अच्छी तरह से संपन्न हो गया था। भंडारे के बाद, श्रीधर उस छोटी लड़ी वैष्णवी के बारे में जानने के लिए उत्सुक थे, पर वैष्णवी गायब हो गई और उसके बाद किसी को नहीं दिखी। बहुत दिनों के बाद श्रीधर को उस छोटी लड़की का सपना आया उसमें स्पष्ट हुआ कि वह मां वैष्णोदेवी थी। माता रानी के रूप में आई लड़की ने उसे गुफा के बारे बताया और चार बेटों के वरदान के साथ उसे आशीर्वाद दिया। श्रीधर एक बार फिर खुश हो गए और मां की गुफा की तलाश में निकल पड़े और कुछ दिनों बाद उन्हें वह गुफा मिल गई। तभी से वहां पर माता के दर्शन के लिए श्रद्धालु जाने लगे।
मंदिर की पौराणिक कथा
मंदिर के संबंध में कई तरह की कथाएं प्रचलित हैं। एक बार त्रिकुटा की पहाड़ी पर एक सुंदर कन्या को देखकर भैरवनाथ उससे पकड़ने के लिए दौड़े। तब वह कन्या वायु रूप में बदलकर त्रिकूटा पर्वत की ओर उड़ चलीं। भैरवनाथ भी उनके पीछे भागे। माना जाता है कि तभी मां की रक्षा के लिए वहां पवनपुत्र हनुमान पहुंच गए। हनुमानजी को प्यास लगने पर माता ने उनके आग्रह पर धनुष से पहाड़ पर बाण चलाकर एक जलधारा निकाली और उस जल में अपने केश धोए। जिसे अब बाणगंगा के नाम से जाना जाता है। फिर वहीं एक गुफा में गुफा में प्रवेश कर माता ने नौ माह तक तपस्या की और वही पर हनुमानजी ने पहरा दिया।
फिर भैरव नाथ वहां आ पहूँचे। उस दौरान एक साधु ने भैरवनाथ से कहा कि तू जिसे एक कन्या समझ रहा है, वह आदिशक्ति जगदम्बा है, इसलिए उस महाशक्ति का पीछा छोड़ दे। भैरवनाथ ने साधु की बात नहीं मानी। तब माता गुफा की दूसरी ओर से मार्ग बनाकर बाहर निकल गईं। यह गुफा आज भी अर्द्धकुमारी या आदिकुमारी या गर्भजून के नाम से प्रसिद्ध है। अर्द्धकुमारी के पहले माता की चरण पादुका भी है। यह वह स्थान है, जहां माता ने भागते-भागते मुड़कर भैरवनाथ को देखा था।
अंत में गुफा से बाहर निकल कर कन्या ने देवी का रूप धारण किया और भैरवनाथ वापस जाने का कह कर फिर से गुफा में चली गईं, लेकिन भैरवनाथ नहीं माना और गुफा में प्रवेश करने लगा। यह देखकर माता की गुफा कर पहरा दे रहे हनुमानजी ने उसे युद्ध के लिए ललकारा और दोनों का युद्ध हुआ। युद्ध का कोई अंत नहीं देखकर माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप लेकर भैरवनाथ का वध कर दिया।
कहा जाता है कि अपने वध के बाद भैरवनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने मां से क्षमादान की भीख मांगी। माता वैष्णो देवी जानती थीं कि उन पर हमला करने के पीछे भैरव की प्रमुख मंशा मोक्ष प्राप्त करने की थी। तब उन्होंने न केवल भैरव को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्रदान की, बल्कि उसे वरदान देते हुए कहा कि मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएंगे, जब तक कोई भक्त, मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा।
कैसे जाए माता वैष्णो देवी
वैष्णो देवी का निकटतम बड़ा शहर है जम्मू जोकि रेलमार्ग, सड़कमार्ग और वायुमार्ग द्वारा भारत के तमाम बड़े शहरों से जुड़ा है। जम्मू तक बस, टैक्सी, ट्रेन तथा हवाई जहाज के मदद से आया जा सकता है। जम्मू भारत के राष्ट्रीय राजमार्ग 1ए पर स्थित है, तथा ब्राड गेज लाइन द्वारा भारत के रेलजाल से जुड़ा है।
वैष्णोदेवी का मंदिर या भवन, कटरा से 13.5 किमी की दूरी पर स्थित है, जो कि जम्मू जिले में जम्मू शहर से लगभग 50 किमी दूर स्थित एक कस्बा है। मंदिर तक जाने की यात्रा इसी कस्बे से शुरू होती है। कटरा से पर्वत पर चढ़ाई करने हेतु पदयात्रा के अलावा, मंदिर तक जाने के लिए पालकियाँ, खच्चर तथा विद्युत-चालित वाहन भी मौजूद होते हैं। इसके अलावा कटरा से साँझीछत, जोकि भवन से 9.5 किमी दूर अवस्थित है, तक जाने हेतु हेलीकॉप्टर सेवा भी मौजूद है कटरा नगर, जम्मू से सड़कमार्ग द्वारा जुड़ा है। पूर्वतः रेलवे की मदद से केवल जम्मू तक पहुंच पाना संभव था, परन्तु वर्ष 2014 में कटरा को जम्मू-बारामूला रेलमार्ग से श्री माता वैष्णो देवी कटरा रेलवे स्टेशन के ज़रिए जोड़ दिया गया, जिसके बाद सीधे कटरा तक रेलमार्ग द्वारा पहुँच पाना संभव है। गर्मियों में तीर्थयात्रियों की संख्या में अचानक वृद्धि के मद्देनज़र अक्सर रेलवे द्वारा प्रतिवर्ष दिल्ली से कटरा के लिए विशेष ट्रेनंल भी चलाई जाती हैं।
आसपास के दर्शनीय स्थल
कटरा व जम्मू के नज़दीक कई दर्शनीय स्थल व हिल स्टेशन हैं, जहाँ जाकर आप जम्मू की ठंडी हसीन वादियों का लुत्फ उठा सकते हैं। जम्मू में अमर महल, बहू फोर्ट, मंसर लेक, रघुनाथ टेंपल आदि देखने लायक स्थान हैं। जम्मू से लगभग 112 किमी की दूरी पर 'पटनी टॉप' एक प्रसिद्ध हिल स्टेशन है। सर्दियों में यहाँ आप स्नो फॉल का भी मजा ले सकते हैं। कटरा के नजदीक शिव खोरी, झज्झर कोटली, सनासर, बाबा धनसार, मानतलाई, कुद, बटोट, और कटरा में ही देवी माता का प्राचीन मंदिर भी यहीं स्थित है। इसके अलावा आदि कई दर्शनीय स्थल हैं।