अलवर भानगढ़ स्टोरी - राजस्थान के जयपुर जिले से करीब 80 किलोमीटर दूर अलवर जिले में स्थित है भानगढ़ का किला। किले में का मंदिर भी है जिसमे भगवन सोमश्वर , गोपीनाथ , मंगल देवी और केशव राय का मंदिर फेमस है। इन मंदिर की दीवारों और खम्बो पर पर की गयी नकाशी से अंदाजा लगाए जा सकता है की यह समूचा किला कितना खूबसूरत और भव्य रहा है भानगढ़ की कहानी बड़ी ही रोचक है 1573 में इससे आमरे के राजा भगवन दस ने भानगढ़ किले का निर्माण करवाया था। किला बसावट के 300 साल बाद तक आबाद रहा। 16वीं शताब्दी में राजा सवाई मान सिंह के छोटे भाई राजा माधो सिंह ने भानगढ़ किले को अपना निवास बना लिया।
भानगढ़ किले की कहानी और इतिहास
कहते हैं कि भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती बहुत खुबसूरत थी। उस समय राजकुमारी खूबसूरती की चर्चा पूरे राज्य में थी। कई राज्यों से रत्नावती के लिए विवाह के प्रस्ताव आ रहे थे। उसी दौरान वो एक बार किले से अपनी सखियों के साथ बाजार में निकली। बाजार में वह एक इत्र की दुकान पर पहुंची और इत्र को हाथ में लेकर उसकी खूशबू सूंघ रही थी। उसी समय उस दुकान से कुछ दूरी सिंधु सेवड़ा नाम का व्यक्ति खड़ा हो कर राजकुमारी को निहार रहा था। सिंघीया उसी राज्य का रहने वाला था और वह काले जादू में महारथी था।
कथित रूप से राजकुमारी के रूप को देख तांत्रिक मोहित हो गया था और राजकुमारी से प्रेम करने लग गया और राजकुमारी को हासिल करने के बारे में सोचने लगा। लेकिन रत्नावती ने कभी उसे पलटकर नहीं देखा।
जिस दुकान से राजकुमारी के लिए इत्र जाता था उसने उस दुकान में जाकर रत्नावती को भेजे जाने वाली इस की बोतल पर काला जादू कर उस पर वशीकरण मंत्र का प्रयोग किया। जब राजकुमारी को सच्चाई पता चल गई, तो उसने इत्र की शीशी पास ही एक पत्थर फेंक दी। इससे शीशी टूट गई और इत्र बिखर गया।
काला जादू होने के कारण पत्थर सिंधु सेवड़ा के पीछे हो लिया और उसे कुचल डाला। सिंधु सेवड़ा तो मर गया, लेकिन मरने से पहले उस तांत्रिक ने श्राप दिया कि इस किले में रहने वाले सभी लोग जल्द ही मर जाएंगे और दुबारा जन्म नहीं लेंगे। उनकी आत्मा इस किले में ही भटकती रहेंगी। आज 21वीं सदी में भी लोगों में इस बात को लेकर भय है कि भानगढ़ में भूतों का निवास है।
रात में भानगढ़ का किला
किसी को भी सूर्यास्त के बाद या सूर्योदय से पहले किले में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। सूरज की आखिरी किरण अगली सुबह आने तक एक बार जब सूरज की रोशनी बोली जाती है, तो पूरा परिदृश्य उदासी और ठिठुरन भरे खोखलेपन से घिर जाता है। किले में अपसामान्य गतिविधियों के बारे में कई स्थानीय कथाएं हैं। यह एक व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह इस पर विश्वास करेगा या नहीं। कहा जाता है कि भानगढ़ किले में रात में आत्माएं घूमती हैं और तरह-तरह की अजीब आवाजें सुनाई देती हैं। साथ ही, जैसा कि कहा जाता है, जो कोई भी रात में किले में प्रवेश करता है, वह सुबह वापस नहीं लौट पाएगा। व्यक्ति को हमेशा ऐसा लगता है जैसे उनकी गतिविधियों पर नजर रखी जा रही है, और हवा एक भारी भारीपन से भरी हुई है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा लगाया गया एक बोर्ड आगंतुकों को अंधेरे समय के दौरान किले के परिसर के भीतर उद्यम न करने की चेतावनी देता है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को खुदाई के बाद सबूत मिले हैं कि यह शहर एक प्राचीन ऐतिहासिक स्थल रहा था। अब किला भारत सरकार की देख रेख में आता है। किले के चारों तरफ आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया (एएसआई) की टीम मौजूद रहती है। एएसआई ने सूर्यास्त बाद किसी के भी यहां रुकने को प्रतिबंधित कर रखा है।
किलें में रूहों का कब्जा
इस किले में कत्ले आम किये गये लोगों की रूहें आज भी भटकती हैं। कई बार इस समस्या से रूबरू हुआ गया है। एक बार भारतीय सरकार ने अर्धसैनिक बलों की एक टुकड़ी यहां लगायी थी ताकि इस बात की सच्चाई को जाना जा सकें, लेकिन वो भी असफल रही कई सैनिकों ने रूहों के इस इलाके में होने की पुष्ठि की थी। इस किले में आज भी जब आप अकेलें होंगे तो तलवारों की टनकार और लोगों की चींख को महसूस कर सकतें है।
इसके अलांवा इस किले भीतर कमरों में महिलाओं के रोने या फिर चुडि़यों के खनकने की भी आवाजें साफ सुनी जा सकती है। किले के पिछले हिस्सें में जहां एक छोटा सा दरवाजा है उस दरवाजें के पास बहुत ही अंधेरा रहता है कई बार वहां किसी के बात करने या एक विशेष प्रकार के गंध को महसूस किया गया है। वहीं किले में शाम के वक्त बहुत ही सन्नाटा रहता है और अचानक ही किसी के चिखने की भयानक आवाज इस किलें में गुंज जाती है।