लाल किला न सिर्फ दिल्ली की शान अपितु पूरे भारत की शान है। 15 अगस्त, 1947 में भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी मिलने के बाद, देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने दिल्ली के लाल किले से पहली बार ध्वजा रोहण कर देश की जनता को संबोधित किया था और अपने देश में अमन, चैन, शांति बनाए रखने एवं इसके अभूतपूर्व विकास करने का संकल्प लिया था। इसलिए लाल किले को जंग-ए-आजादी का गवाह भी माना जाता है। वहीं तभी से हर साल यहां स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देश के प्रधानमंत्री द्धारा लाल किले पर झंडा फहराए जाने की परंपरा है।
लाल किले का इतिहास
सम्राट शाहजहाँ ने 1638 में अपनी राजधानी आगरा को दिल्ली में शिफ्ट करने का सोचा, जिसके बाद दिल्ली में लाल किले का निर्माण कार्य शुरू किया गया। शाहजहाँ का पसंदीदा रंग लाल व् सफ़ेद हुआ करता था, इसलिए इसके पत्थर का चुनाव लाल रंग का हुआ। इसे उस समय के वास्तुकार उस्ताद अहमद लाहौरी ने डिजाईन किया था, इन्होने आगरा की शान ताजमहल जैसी महान कृति को भी डिजाईन किया था। किले का निर्माण यमुना नदी के तट पर किया गया था, किला तीन तरफ से नदी से घिरा हुआ है। किले का निर्माण कार्य मुसलमानों के पावन दिन मुहरम पर 13 मई 1638 को शुरू किया गया। किले की पहली नींव इज्जर खान ने रखी थी। शाहजहाँ चाहते थे कि दिल्ली में उनका यह किला सबसे बड़ा हो, वे उसे लाहोर व् आगरा के किलों से भी बड़ा चाहते थे।
किले को बनने में 10 साल का समय लगा, यह 1648 में पूरा हुआ। शीश महल मुख्य किले के उत्तरी व् दक्षिणी में स्थित है। यहाँ एक खास महल भी बनाया गया है, जो राजा का निजी कक्ष हुआ करता था, यहाँ वे सोते या आराधना किया करते थे। किले के निर्माण में मुख्य रूप से इज्जत खान, अलीवर्दी खान, मुकर्मत खान का हाथ था। इन्हीं की देखरेख में किले का काम पूरा हुआ था। मुकर्मत खान शाहजहाँ के बहुत खास थे, जब किला का काम पूरा हो गया तब वे दिल्ली में नहीं थे, बल्कि सल्तनत के काम के सिलसिले में काबुल गए हुए थे। मुकर्मत खान से शाहजहाँ को ख़त लिखकर बताया कि उनका महल बन कर तैयार है।
पहले दिन जब शाहजहाँ महल में आ रहे थे, उस दिन महल को किसी दुल्हन की तरह सजाया गया। जश्न की तैयारी की गई. सजावट की छोटी से छोटी बात का ख्याल रखा गया। शाहजहाँ की सभा जहाँ लगती थी, दीवाने खास को विशेष तौर पर तैयार किया गया, इसकी छतों, दीवारों पर नक्काशी की गई, रेशमी चादर का उपयोग किया गया। दीवाने खास के बीचों बीच एक बड़ा झूमर लगाया गया, जिसे खास अहमदाबाद में बनवाया गया था। दरबार में शाहजहाँ के पहुँचते ही फूलों की वर्षा की गई। शाहजहाँ ने सबको बहुत से जेवर, सिक्के, हीरे जवारत बाटें।
लाल किले की शानदार बनावट और इसका भव्य स्वरूप
भारत की जंग-ए-आजादी की गवाह रह चुका लाल किला दुनिया भर में अपनी भव्यता और आर्कषण की वजह से मशहूर है। यह अपनी बेहतरीन कारीगरी और शानदार बनावट के लिए विश्व भर में जाना जाता है। अष्टकोणीय आकार में बने दुनिया के इस सबसे खूबसूरत किले का निर्माण लाल बलुआ पत्थर एवं सफेद संगमरमर के पत्थरों से किया गया है। वहीं इस किले का जब निर्माण किया गया था तब इसे कोहिनूर हीरा जैसे कई बहुमूल्य रत्नों से सजाया गया था, लेकिन जब भारत पर अंग्रेजों का राज हुआ, तब वे इसे निकाल कर ले गए थे। इसके साथ ही इस विशाल किले के अंदर शाही मयूर राज सिंहासन भी बनाया गया था, जिस पर बाद में अंग्रेजों में अपना कब्जा जमा लिया था। करीब डेढ़ किलोमीटर की परिधि में फैले भारत के इस भव्य ऐतिहासिक स्मारक के चारों तरफ करीब 30 मीटर ऊंची पत्थर की दीवार बनी हुई है, जिसमें मुगलकालीन वास्तुकला का इस्तेमाल कर बेहद सुंदर नक्काशी की गई है। इसके साथ ही इसमें रेशमी चादर का भी इस्तेमाल किया गया है। मुगल, हिंदू और फारसी स्थापत्य शैली से मिलकर बने दुनिया के इस विशाल किले के परिसर में कई सुंदर और भव्य इमारते बनी हुई हैं, जो कि इसकी खूबसूरती को चार चांद लगा रही हैं और इसके आर्कषण को दो गुना बढ़ा देती है। करीब डेढ़ किलोमीटर की परिधि में फैले इस भव्य लाल किले के अंदर मोती मस्जिद, नौबत खाना, मीना बाजार, दीवाने खास, रंग महल, दीवानेआम, सावन जैसी कई खूबसूरता ऐतिहासिक इमारते बनी हुई हैं। दुनिया के इस सबसे विशाल किले के अंदर तीन द्धार भी बने हुए हैं, इस किले के अंदर बने दिल्ली द्वार और लाहौर द्वार प्रमुख हैं, जिनका अपना ऐतिहासिक महत्व भी है। आपको बता दें कि इस भव्य किले के अंदर बना लाहौर गेट सैलानियों एवं आम लोगों के लिए खोला गया है, जबकि इस किले के अंदर बने दिल्ली द्वार से सिर्फ वीवीआईपी और कुछ बेहद खास लोग ही एंट्री कर सकते हैं।
वहीं कई इतिहासकारों के मुताबिक पहले इस भव्य किले के अंदर 4 अलग-अलग दरवाजों का निर्माण करवाया गया था, लेकिन सुरक्षा के चलते बाद में 2 दरवाजों को बंद कर दिया गया था। भारत के राष्ट्रीय गौरव माने जाने वाले इस भव्य किले के अंदर मुगल काल की लगभग सभी कलाकृतियां मौजूद हैं। इसके साथ ही दुनिया के इस सबसे खूबसूरत ऐतिहासिक स्मारक के आस-पास बने हर-भरे फूलों का बगीचा, मंडप और सजावटी मेहराब भी हैं, जो कि इसने सौंदर्य को और भी ज्यादा बढ़ा रहे हैं। विश्व की इस सबसे भव्य और खूबसूरत ऐतिहासिक इमारत को बनाने में उस दौरान करीब 1 करोड़ रुपए की लागत का खर्चा आया था, यह उस समय का सबसे शानदार और महंगा किला था, जिसका प्राचीन नाम ”किला-ए-मुबारक था ”।
लाल किले का वास्तुकार
लाल किले में उच्चस्तर की कला एवं विभूषक कार्य दृश्य है। यहाँ की कलाकृतियाँ फारसी, यूरोपीय एवं भारतीय कला का संश्लेषण है, जिसका परिणाम विशिष्ट एवं अनुपम शाहजहानी शैली था। यह शैली रंग, अभिव्यंजना एवं रूप में उत्कृष्ट है। लालकिला दिल्ली की एक महत्वपूर्ण इमारत समूह है, जो भारतीय इतिहास एवं उसकी कलाओं को अपने में समेटे हुए हैं। इसका महत्त्व समय की सीमाओं से बढ़कर है। यह वास्तुकला सम्बंधी प्रतिभा एवं शक्ति का प्रतीक है। सन 1913में इसे राष्ट्रीय महत्त्व के स्मारक घोषित होने से पूर्वैसकी उत्तरकालीनता को संरक्षित एवं परिरक्षित करने हेतु प्रयास हुए थे।
इसकी दीवारें, काफी सुचिक्कनता से तराशी गईं हैं। ये दीवारें दो मुख्य द्वारों पर खुली हैं ― दिल्ली दरवाज़ा एवं लाहौर दरवाज़ा। लाहौर दरवाज़े इसका मुख्य प्रवेशद्वार है। इसके अन्दर एक लम्बा बाजार है, चट्टा चौक, जिसकी दीवारें दुकानों से कतारित हैं। इसके बाद एक बडा़ खुला स्थान है, जहाँ यह लम्बी उत्तर-दक्षिण सड़क को काटती है। यही सड़क पहले किले को सैनिक एवं नागरिक महलों के भागों में बांटती थी। इस सड़क का दक्षिणी छोर दिल्ली गेट पर है।
लाल किला के परिसर में बनी मुख्य ऐतिहासिक इमारतें
छाबरी बाजार, लाहौरी गेट, दिल्ली गेट, रंग महल, दीवान–ए–आम, दीवाने खास, मोती मस्जिद, मुमताज महल, नौबत खाना, खस महल, हमाम, हीरा महल, चट्टा चौक