शीतला माता मंदिर प्राचीन समय से ही प्रसिद्ध मंदिरों में से माना जाता है। हरियाणा राज्य के गुड़गांव में स्थित शीतला माता का मंदिर कई आस्थाओं का प्रतीक है यह मंदिर 500 साल पुराना है। देश में नौ शक्तिपीठों में से एक गुड़गांव गांव में शीतला माता देवी धार्मिक मंदिर तालाब, लोगों की एक बड़ी भीड़ को आकर्षित करता है, विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान, दिवाली त्यौहार के आसपास इस मंदिर में चैत्र और अशध में एक वर्ष में दो बार महीने। कुम्भ जैसी स्थिति इन मेलों के दौरान अनुभव की जाती है ऐसा माना जाता है कि इस शक्तिपीठ की पूजा सभी इच्छाओं को पूरा करती है। देश के सभी प्रदेशों से श्रद्धालु यहां मन्नत मांगने आते हैं। गुड़गांव का शीतला माता मंदिर देश भर के श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। यहां साल में दो बार एक-एक माह का मेला लगता है। यहां के शीतला माता मंदिर की कहानी महाभारत काल से जुड़ी हुई है।
महाभारत के समय में भारतवंशियों के कुल गुरु कृपाचार्य की बहन शीतला देवी (गुरु मां) के नाम से गुरु द्रोण की नगरी गुड़गांव में शीतला माता की पूजा होती है। लगभग 500 सालों से यह मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। लोगों की मान्यता है कि यहाँ पूजा करने से शरीर पर निकलने वाले दाने, जिन्हें स्थानीय बोलचाल में (माता) कहते हैं, नहीं निकलते।
शीतला माता का इतिहास
महाभारत काल मे द्रोणाचार्य यहीं रहा करते थे कौरवों और पांडवों को अस्त्र-शस्त्र की विद्या उन्होंने इसी स्थान पर दी थी, तथा अपने अनेकों शिष्यों को भी अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान यहीं दिया था। जब महाभारत काल मे द्रोणाचार्य वीरगति को प्राप्त हुए तब उनकी पत्नी कृपी ने भी उनकी चिता पर ही सती होने का फैसला ले लिया। गांव के लोगो ने उनको बहुत समझाया मगर उन्होंने अपने पति की चिता के साथ ही सती होने का निर्णय ले लिया।
कृपी ने सती होने से पहले सबको यह कहा कि यदि कोई भी इस स्थान पर विनती करेगा जिस जगह मैं सती धारण कर रही हूं वहां उसकी हर मनोकामना पूरी होगी। तभी से लोग वहां उनके दर्शन करने और अपनी मुरादें लेकर आने लगे, माता उनकी मुरादें भी पूरी करती रही।
17वीं शताब्दी में राजा भरपुर ने गुड़गांव में माता कृपी के स्थान पर मंदिर की स्थापना करना उचित समझा, तथा साथ ही सवा किलो सोने की मूर्ति बनवा दी। इस मूर्ति को शीतला माता का नाम दिया गया, तभी से उनके भक्त उनको शीतला माता के नाम से पुकारने लगे और उनके दर्शन करने दूर-दूर से यहां आने लगे।
शीतला मां की मान्यता
ज्योतिष के अनुसार शीतला माता सनातन (हिंदू) धर्म में आस्था रखने वालों की एक प्रसिद्ध देवी हैं। इन्हें संक्रामक रोगों से बचाने वाली देवी कहा जाता है। स्कंद पुराण में इनका जिस प्रकार से वर्णन किया गया है उसके अनुसार इन्हें स्वच्छता की देवी भी कहा जा सकता है। देहात के इलाकों में तो स्मालपोक्स (चेचक) को माता, मसानी, शीतला माता आदि नामों से जाना जाता है। मान्यता है कि शीतला माता के कोप से ही यह रोग पनपता है इसलिये इस रोग से मुक्ति के लिये आटा, चावल, नारियल, गुड़, घी इत्यादि सीद्धा माता के नाम पर रोगी श्रद्धालुओं से रखवाया जाता है। पौराणिक ग्रंथों में प्राचीन काल से ही शीतला माता का माहात्मय बहुत अधिक माना गया है। स्कंद पुराण के अनुसार इनका वाहन गर्दभ बताया गया है। ये अपने हाथों में कलश, सूप, झाड़ू एवं नीम के पत्ते धारण करती हैं। इन सब का चेचक जैसे रोग से सीधा संबंध भी है एक और कलश का जल शीतलता देता है तो सूप से रोगी को हवा की जाती है, झाड़ू से जो छोटे छोटे फोड़े निकलते हैं वो फट जाते हैं नीम के पत्ते उन फोड़ों में सड़न नहीं होने देते। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि माता शीतला की कृपा से रोगी के रोग नष्ट हो जाते हैं।
शीतला मंदिर का महत्व
शीतला मां के इस मंदिर की खासियत यह भी है कि श्रद्धालु, नवजात बच्चों का प्रथम मुंडन संस्कार यहीं पर करवाना शुभ मानते हैं। मंदिर प्रशासन को भी मुंडन के ठेके से लाखों की आमदनी होती है जिसे मंदिर के विकास व आयोजनों में खर्च किया जाता है।
इस दिन करें दर्शन
यहां सोमवार को दर्शन करने का विशेष महत्व है। साल भर में करीब 15-16 लाख श्रद्धालु यहां आते हैं। इस धार्मिक स्थल पर हर उम्र के पुरुष-महिलाएं दिखती हैं जो लाल रंग का दुपट्टा और मुरमुरा प्रसाद के रूप में चढ़ाते हैं। ऐसी मान्यता है कि यह देवी सभी कष्टों से छुटकारा दिलाती हैं।